पढ़ा लिखा

Updated on 03-04-2023 05:57 PM

संजय दुबे 

  शिक्षा, एक शब्द है जिसमे व्यापक रूप से  किसी या किन्ही विषयो पर व्यवस्थित ज्ञान का  अर्थ निहित है।  किसी भी देश मे जब तक शिक्षण संस्थानो ने जन्म नही लिया था तब भी औऱ अब भी ज्ञानी व्यक्ति जन्म लेते रहे है।
 ज्ञान कहां से, कब कितना अर्जित किया जाए ये प्रश्न सारगत है। आधुनिक जमाने मे   डेज़ह में दो प्रकार के शिक्षण संस्थान है।  पहला अंग्रेजी  माध्यम  जिसमे किताबी  शिक्षा नर्सरी से शुरू होकर पी पी 1 या के जी 1 से  शुरू होकर प्रायमरी, मिडिल, हायर सेकंडरी और कॉलेज  पर खत्म होती है। दूसरा हिंदी या मान्यता प्राप्त भाषा है जिसमे बाल मंदिर से लेकर प्राथमिक , माध्यमिक, उच्चतर विद्यालय के बाद महाविद्यालय में  किताबी शिक्षा  पूर्ण किया जाता है।  हर स्तर जे अंत मे एक मार्कशीट या अंक सूची  दी जाती है। कालेज या महाविद्यालय की पढ़ाई के बाद ग्रेजुएट स्नातक  औऱ स्नातकोत्तर या पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री दिए जाने का प्रावधान है।
 अब अगर  कोई व्यक्ति  शिक्षण संस्थान में शिक्षा प्राप्त न करे या आधे अधूरे में  छोड़ दे  तो उस व्यक्ति को क्या मात्र लिया जाए। या कोइ व्यक्ति शिक्षण संस्थान जाए ही न तो उसे क्या अज्ञानी मान लिया जाएगा। इससे परे जिन्होंने बचपन से लेकर जवानी तक हर स्तर के शिक्षण संस्थानों में किताबी शिक्षा की परीक्षा को उतीर्ण कर लिया हो उसे पढ़ा लिखा ही मान लिया जाए।  
           इस विषय को लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने एक प्रश्न किया है कि देश का प्रधानमंत्री पढ़ा लिखा होना चाहिए। इस विषय को उन्होंने सुरक्षित जगह विधानसभा के भीतर कहा, पढ़े लिखे है केजरीवाल ! जानते है बाहर बोलने पर  न जाने कहाँ कहाँ एफआईआर हो जाये।  उन्होंने देश के भूतपूर्व प्रधानमंत्री गणों की डिग्री भी बताई। सभी जानते है कि अरविंद केजरीवाल आईटीआई पास आउट है और इंडियन रेवेन्यू सर्विस से रहे है।  भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री की डिग्रीधारी शिक्षा को लेकर उनकी टिप्पणी है  उसका जवाब होना चाहिए, इस बार से परे कि किसी का समर्थन किसी का विरोध नही होता है। और किसी का विरोध किसी का समर्थन नही होता है।
   देश संविधान से चलता है ये बात कम से कम निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को बेहतर ढंग से  मालूम होता है। देश के संविधान निर्माताओं में जितने भी सदस्य रहे उनमें शैक्षणिक संस्थानों के निकले व्यक्ति भी थे और नहीं निकले व्यक्ति भी थे। इन्होंने मिलकर  सर्व सम्मति से देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री सहित राज्यपाल, मुख्यमंत्री और  विधायक आदि के लिए आवश्यक योग्यता का उल्लेख किया है। जाहिर है कि डॉ राजेन्द्र प्रसाद , प जवाहरलाल नेहरू, भीमराव अंबेडकर जैसे दूरगामी सोंच वाले व्यक्ति जानते रहे होंगे कि देश को चलाने के लिए  शैक्षणिक योग्यता वाले व्यक्तियों से व्यावहारिक रूप से जनमानस को समझने वाले व्यक्ति ज्यादा कारगर होंगे। ठीक वैसे ही जैसे घर की महिलाएं बिना होम साइंस की डिग्री पाए स्वादिष्ट  भोजन बनाने में माहिर होती है। किसी प्रबंध संस्थान से एमबीए किये बगैर एक व्यापारी पैसे का जितना बेहतर पर  प्रबंधन कर लेता है वैसे ही राजनीति भी है जिसे करने के लिए किसी भी शैक्षणिक संस्थानों के डिग्री की जरूरत नही है। आपको नेता मानते हुए आपकी नेतृत्व क्षमता ही इसकी अनिवार्य डिग्री होती है।  एक नही दो बार देश के डिग्रीधारी औऱ बेडिग्रीधारी मतदाताओं ने अपना जनसमर्थन दिया है इस पर पढ़े लिखे की अनिवार्यता की मांग बेसिरपैर की नज़र आती है।  अरविंद केजरीवाल जब जन आंदोलन के लिए  अन्ना हज़ारे के नेतृत्व को चुना था तब उनको नहीं जुड़ना था क्योंकि अन्ना हजारे तो डिग्रीधारी थे ही नही। 
 व्यवहारिक शिक्षा से बढ़कर कोई भी शिक्षा नहीं है ।रही बात  डिग्रीधारी शिक्षा की तो देश मेअनेक आईएएस, आईपीएस भी मुन्ना भाइयों के कारण मजा लूट रहे है। 
  बेहतर ये हो कि संविधान में उल्लिखित व्यवस्था को स्वीकार किया जाए। 1985 में उत्कृष्ट लेखन के लिए गुजराती भाषा के प्रख्यात लेखक पन्ना लाल पटेल को ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला था ।वे केवल 4 थी  तक शिक्षा प्राप्त किये थे। याने पढ़े भी कम थे और लिखे तो औऱ कम ही थे।  शुक्र है कि अरविंद  केजरीवाल उस समय ज्ञानपीठ पुरस्कार समिति के अध्यक्ष नहीं थे


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