संजय दुबे
भारत के संविधान में व्यवस्थापिका द्वारा बनाये गए कानूनों का पालन करने के लिए कार्यपालिका बनाई गई है। आम जनता के हिट के लिए कार्य करने के लिए प्रथम श्रेणी से लेकर चतुर्थ श्रेणी के शासकीय कर्मचारियों की नियुक्ति केंद्र और राज्य शासन द्वारा की जाती है। शासकीय सेवक बनने के लिए कितनी होड़ से इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि छत्तीसगढ़ में लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित भृत्य की सैकड़ो की संख्या में भर्ती के लिए लाखों लोग परीक्षा में शामिल हुए।
शासकीय सेवा में जो कर्मचारी शासन विरोधी कार्य पर नियंत्रण लगाने का दायित्व सम्हालते है उनके कार्यो से नियम विपरीत कार्य करने वालो पर नियंत्रण लगता है ।इसका विरोध बड़े ही सुनियोजित ढंग से किया जाता है जिससे संबंधित सेवक को न केवल प्रशासनिक परेशानी हो बल्कि मानसिक रूप सें त्रस्त हो जाये। इस कार्य के लिए फर्जी नामो से शिकायत करने की परंपरा है। अवैध कार्य करने वाले इस प्रकार के कार्य को बखूबी से करते हुए शासन , जनप्रतिनिधियों सहित समाचार पत्रों में शिकायत भेजकर कार्य करने वालो को प्रभावित करने का कार्य करते है।अनेक अवसरों पर जायज शिकायते भी होती है लेकिन एक शोध से ज्ञात हुआ है कि 95 फीसदी शिकायते फर्जी नामो से की जाती है।
केवल नाम लिखकर बिना पता, बिना संपर्क नंबर के शिकायत की जाती है। ऐसी शिकायत पर शासन का समय और राशि के अलावा समय भी बर्बाद होता है।
भारत शासन सहित छत्तीसगढ़ शासन द्वारा जनसुविधा के लिए उनकी जायज शिकायतो के निराकरण के लिए अनेक स्तरों पर पोर्टल बनाया हुआ है जिनमे ऑनलाइन शिकायत किये जाने की व्यवस्था है। इसके अलावा लिखित रूप से भी सप्रमाणिक शिकायत की जा सकती है। इसका पालन न होने और फर्जी शिकायत के साथ साथ अप्रामाणिक शिकायतों पर नियंत्रण लगाने की दृष्टि से निर्णय लिया गया है कि जिन शिकायतों में केवल नाम रहेगा और पता, संपर्क नंबर नही रहेगा ऐसी शिकायतों पर विचार नही किया जाएगा
कार्मिक विभाग ने ये भी निर्धारित किया है कि जिन शिकायतो में शिकायत कर्ता का नाम, पता का उल्लेख होगा , उसे शिकायत के संबंध में प्रमाण प्रस्तुत करने के लिए 15 दिन का समय दिया जा कर जानकारी मांगी जाएगी। 15 दिन के भीतर प्रमाण प्रस्तुत न करने की स्थिति में पुनः 15 दिन का अतिरिक्त समय दिया जाएगा। इस अवधि के बीत जाने के बाद भी यदि शिकायतकर्ता प्रमाण प्रस्तुत नही करता है तो संबंधित कर्मचारी को विधिक कार्यवाही की स्वतंत्रता होगी।