अरविंद केजरीवाल जी,आप कानून से ऊपर नहीं है!

Updated on 23-03-2024 06:35 PM


संजय दुबे

 केंद्रीय जांच एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय के एक के बाद एक लगातार नौ  समंंस को अनदेखा करने वाले अरविंद केजरीवाल  को उच्च न्यायालय से राहत न मिलने के बाद ईडी के अधिकारियो ने गिरफ्तार कर ही लिया।   स्वतंत्र भारत के इतिहास में  अरविंद केजरीवाल पहले ऐसे मुख्य मंत्री हो गए है जो पद पर रहते हुए गिरफ्तार हुए है। उनके पहले अनेक राज्यों के भूतपूर्व  मुख्यमंत्री के रूप में बिहार के भूतपूर्व मुख्यमंत्री  जगन्नाथ मिश्र,लालू प्रसाद यादव और बिहार से अलग होकर बने नए राज्य झारखंड के मधु कोड़ा  और हेमंत सोरेन, जय ललिता(तमिलनाडु),  चंद्रा बाबू नायडू(तेलंगाना) और ओम प्रकाश चौटाला (हरियाणा) अनेक मामलों में गिरफ्तार हो चुके है।
  अरविंद केजरीवाल, का अतीत जितना गौरवशाली रहा उतना ही उनका  दिल्ली के मुख्यमंत्री के दूसरा कार्यकाल   विवादास्पद रहा ।  अन्ना हजारे के लोकपाल आंदोलन से  सुर्खियों में आए अरविंद केजरीवाल ने शुरू में ऊंचे आदर्शवाद की बात कही। उन्होंने देश के पेशेवर राजनीतिज्ञो के इस चुनौती को स्वीकार किया था कि कीचड़ को साफ करने की औकात रखते हो तो जन प्रतिनिधि बन कर आओ। मुझे अच्छे से याद है  कि इसी देश के निर्वाचित जन प्रतिनिधियों के झुंड ने उनसे पूछा था who are you? इसका जवाब  अरविंद केजरीवाल ने we the people of India कह कर दिया था तब उनकी खिल्ली उड़ाकर बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। इस अपमान के नींव पर ही आंदोलन के कुछ लोगो ने अन्ना हजारे से अलग होकर आम जनता के बीच जाने के लिए आम आदमी पार्टी (आप) की स्थापना की। भ्रष्ट्राचार के खिलाफ अरविंद केजरीवाल की कोशिश में ईमानदारी दिखी थी।देश की विद्रूप राजनैतिक पार्टियां जिनकी न कोई चाल थी, न चेहरा था न चरित्र था ऐसे लोगो के सामने आम आदमी के लिए अरविंद केजरीवाल खड़े हुए, लड़े तीन बार की मुख्य मंत्री शीला दीक्षित को हराया।दिल्ली में बहुमत  36से9सीट दूर रहे। वे चाहते तो कांग्रेस का समर्थन न लेकर फिर से विधान सभा चुनाव करवा सकते थे लेकिन जिस पार्टी के अध्यक्ष और उनके रिश्तेदारों को भ्रष्ट्राचार का पर्याय बताते थे उनसे ही हाथ मिलाकर ये सिद्ध कर दिया कि राजनीति के दलदल में घुसने वाले को कीचड़ से सरोबार होना ही पड़ता है। इसी बीच अरविंद केजरीवाल को ये भी गुमान हो गया कि वे देश में इकलौते व्यक्ति है जो ईमानदार है वो भी ऐसे वैसे नहीं बल्कि कट्टर ईमानदार है।  वाराणसी में नरेंद्र मोदी के सामने खड़े हो गए। पराजित हुए। दिल्ली के  सरकार के  दो साल पूरे होने के बाद फिर से हुए दो चुनाव में अरविंद केजरीवाल के सरकार की शिक्षा,स्वास्थ्य की नीतियों ने देश को प्रभावित किया और ये कहने में संकोच नही होना चाहिए कि देश के दीगर राज्यो में कार्यरत हर पार्टी की सरकार को नकल उतारनी पड़ गई। दूसरे राज्यों ने दिल्ली  सरकार की खूब नकल उतारी। इससे बच्चो और कमजोर तबकों को लाभ मिला। इसके अलावा दिल्ली के पानी माफिया से मुक्ति भी साहसिक कदम था। इसका परिणाम ये हुआ कि आप पार्टी को दूसरी बार दिल्ली दरबार का सिंहासन फिर मिल गया। 
आप पार्टी को  मिले दूसरी बार को बहुमत ने सही मायने में अरविंद केजरीवाल का दिमाग फिरा दिया।राजनीति में स्वच्छता की बात करने वाले ने दूसरी पार्टी के प्रिय विषय  "आबकारी"पर  अपनी नजरे इनायत कर ली। देश में कमोबेश शराब ऐसी वस्तु है जिसके महंगे होने अथवा गुणवत्ता नीचे जाने पर कभी भी जन आंदोलन नही होता।  बड़ी सादगी से दुकान में शराब क्रेता जाकर शराब खरीदता है।दो पेग में नहीं चढ़ी तो तीसरा पी लेगा लेकिन शराब निर्माता कंपनी पर लानत भेजने के बजाय खुद को दोषी मान लेगा। ऐसे में देश भर को शराब पिलाने वाली कंपनी हर सरकार से तालमेल बैठा ही लेती है।
भाजपा के केंद्र में आने के बाद ये तो समझ में आ ही गया है कि अगर शराब को टारगेट कर दिया जाए तो कमोबेश बहुत से राज्य सरकारें घिर सकती है।  झारखंड, छत्तीसगढ़ और दिल्ली ये बात प्रमाणित करती ही है। 
 अरविंद केजरीवाल दोहरे मुखौटे वाले  व्यक्ति साबित हुए। पहले उन्होंने जो कहा  उससे लगा कि वे नए तरीके की राजनीति के पैरवीकार है लेकिन वक्त के बाद वे पलट दिखे। खुद को सादगी का प्रतिरूप बताने वाले  देश की हर राजनैतिक पार्टी के लिए  नासूर थे। जिन्हे सुबह गाली देते शाम को साथ में बैठ कर नीति बनाते। अपने को  ईमानदार वह भी कट्टर बताने वाले अरविंद केजरीवाल की पार्टी पंजाब में जीत और गुजरात में कांग्रेस की हार के लिए जिम्मेदार बन भले ही राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा पा गई लेकिन  पार्टी के आधार स्तम्भ मनीष सिसोदिया, संजय सिंह सहित अब खुद शराब के गिलास में औंधे गिर गए है। सचमुच शराब घर तो बर्बाद करती है। हर जांच के बाद एक ढोंगी  व्यक्त्व्य सामने आता है जांच में पैसे बरामद नहीं हुए, तो सरकार ए आलम, न तो आप होशियार है और न ही जनता मूर्ख है। एक अदना सा चपरासी भी दो नंबर के पैसे घर में नही रखता है और न ही किसी डायरी में लिखता है, मस्तिष्क में सब हिसाब रहता है,जिसका कोई प्रमाण नहीं होता। 
अरविंद केजरीवाल के शराब मामले में नाम सामने के बाद आरोपी से अपराधी बनने का सफर शुरू होता है,जब तक सबसे  बड़ी अदालत के दरवाजे से न्याय का अंतिम निर्णय नहीं होता तब तक न्यायालय पर हर उस व्यक्ति को भरोसा करना चाहिए जो संविधान की शपथ लेकर  जन सेवक बनता है, चाहे वह  जन प्रतिनिधि हो या शासकीय सेवक


 केंद्रीय जांच एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय के एक के बाद एक लगातार नौ  समंंस को अनदेखा करने वाले अरविंद केजरीवाल  को उच्च न्यायालय से राहत न मिलने के बाद ईडी के अधिकारियो ने गिरफ्तार कर ही लिया।   स्वतंत्र भारत के इतिहास में  अरविंद केजरीवाल पहले ऐसे मुख्य मंत्री हो गए है जो पद पर रहते हुए गिरफ्तार हुए है। उनके पहले अनेक राज्यों के भूतपूर्व  मुख्यमंत्री के रूप में बिहार के भूतपूर्व मुख्यमंत्री  जगन्नाथ मिश्र,लालू प्रसाद यादव और बिहार से अलग होकर बने नए राज्य झारखंड के मधु कोड़ा  और हेमंत सोरेन, जय ललिता(तमिलनाडु),  चंद्रा बाबू नायडू(तेलंगाना) और ओम प्रकाश चौटाला (हरियाणा) अनेक मामलों में गिरफ्तार हो चुके है।
  अरविंद केजरीवाल, का अतीत जितना गौरवशाली रहा उतना ही उनका  दिल्ली के मुख्यमंत्री के दूसरा कार्यकाल   विवादास्पद रहा ।  अन्ना हजारे के लोकपाल आंदोलन से  सुर्खियों में आए अरविंद केजरीवाल ने शुरू में ऊंचे आदर्शवाद की बात कही। उन्होंने देश के पेशेवर राजनीतिज्ञो के इस चुनौती को स्वीकार किया था कि कीचड़ को साफ करने की औकात रखते हो तो जन प्रतिनिधि बन कर आओ। मुझे अच्छे से याद है  कि इसी देश के निर्वाचित जन प्रतिनिधियों के झुंड ने उनसे पूछा था who are you? इसका जवाब  अरविंद केजरीवाल ने we the people of India कह कर दिया था तब उनकी खिल्ली उड़ाकर बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। इस अपमान के नींव पर ही आंदोलन के कुछ लोगो ने अन्ना हजारे से अलग होकर आम जनता के बीच जाने के लिए आम आदमी पार्टी (आप) की स्थापना की। भ्रष्ट्राचार के खिलाफ अरविंद केजरीवाल की कोशिश में ईमानदारी दिखी थी।देश की विद्रूप राजनैतिक पार्टियां जिनकी न कोई चाल थी, न चेहरा था न चरित्र था ऐसे लोगो के सामने आम आदमी के लिए अरविंद केजरीवाल खड़े हुए, लड़े तीन बार की मुख्य मंत्री शीला दीक्षित को हराया।दिल्ली में बहुमत  36से9सीट दूर रहे। वे चाहते तो कांग्रेस का समर्थन न लेकर फिर से विधान सभा चुनाव करवा सकते थे लेकिन जिस पार्टी के अध्यक्ष और उनके रिश्तेदारों को भ्रष्ट्राचार का पर्याय बताते थे उनसे ही हाथ मिलाकर ये सिद्ध कर दिया कि राजनीति के दलदल में घुसने वाले को कीचड़ से सरोबार होना ही पड़ता है। इसी बीच अरविंद केजरीवाल को ये भी गुमान हो गया कि वे देश में इकलौते व्यक्ति है जो ईमानदार है वो भी ऐसे वैसे नहीं बल्कि कट्टर ईमानदार है।  वाराणसी में नरेंद्र मोदी के सामने खड़े हो गए। पराजित हुए। दिल्ली के  सरकार के  दो साल पूरे होने के बाद फिर से हुए दो चुनाव में अरविंद केजरीवाल के सरकार की शिक्षा,स्वास्थ्य की नीतियों ने देश को प्रभावित किया और ये कहने में संकोच नही होना चाहिए कि देश के दीगर राज्यो में कार्यरत हर पार्टी की सरकार को नकल उतारनी पड़ गई। दूसरे राज्यों ने दिल्ली  सरकार की खूब नकल उतारी। इससे बच्चो और कमजोर तबकों को लाभ मिला। इसके अलावा दिल्ली के पानी माफिया से मुक्ति भी साहसिक कदम था। इसका परिणाम ये हुआ कि आप पार्टी को दूसरी बार दिल्ली दरबार का सिंहासन फिर मिल गया। 
आप पार्टी को  मिले दूसरी बार को बहुमत ने सही मायने में अरविंद केजरीवाल का दिमाग फिरा दिया।राजनीति में स्वच्छता की बात करने वाले ने दूसरी पार्टी के प्रिय विषय  "आबकारी"पर  अपनी नजरे इनायत कर ली। देश में कमोबेश शराब ऐसी वस्तु है जिसके महंगे होने अथवा गुणवत्ता नीचे जाने पर कभी भी जन आंदोलन नही होता।  बड़ी सादगी से दुकान में शराब क्रेता जाकर शराब खरीदता है।दो पेग में नहीं चढ़ी तो तीसरा पी लेगा लेकिन शराब निर्माता कंपनी पर लानत भेजने के बजाय खुद को दोषी मान लेगा। ऐसे में देश भर को शराब पिलाने वाली कंपनी हर सरकार से तालमेल बैठा ही लेती है।
भाजपा के केंद्र में आने के बाद ये तो समझ में आ ही गया है कि अगर शराब को टारगेट कर दिया जाए तो कमोबेश बहुत से राज्य सरकारें घिर सकती है।  झारखंड, छत्तीसगढ़ और दिल्ली ये बात प्रमाणित करती ही है। 
 अरविंद केजरीवाल दोहरे मुखौटे वाले  व्यक्ति साबित हुए। पहले उन्होंने जो कहा  उससे लगा कि वे नए तरीके की राजनीति के पैरवीकार है लेकिन वक्त के बाद वे पलट दिखे। खुद को सादगी का प्रतिरूप बताने वाले  देश की हर राजनैतिक पार्टी के लिए  नासूर थे। जिन्हे सुबह गाली देते शाम को साथ में बैठ कर नीति बनाते। अपने को  ईमानदार वह भी कट्टर बताने वाले अरविंद केजरीवाल की पार्टी पंजाब में जीत और गुजरात में कांग्रेस की हार के लिए जिम्मेदार बन भले ही राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा पा गई लेकिन  पार्टी के आधार स्तम्भ मनीष सिसोदिया, संजय सिंह सहित अब खुद शराब के गिलास में औंधे गिर गए है। सचमुच शराब घर तो बर्बाद करती है। हर जांच के बाद एक ढोंगी  व्यक्त्व्य सामने आता है जांच में पैसे बरामद नहीं हुए, तो सरकार ए आलम, न तो आप होशियार है और न ही जनता मूर्ख है। एक अदना सा चपरासी भी दो नंबर के पैसे घर में नही रखता है और न ही किसी डायरी में लिखता है, मस्तिष्क में सब हिसाब रहता है,जिसका कोई प्रमाण नहीं होता। 
अरविंद केजरीवाल के शराब मामले में नाम सामने के बाद आरोपी से अपराधी बनने का सफर शुरू होता है,जब तक सबसे  बड़ी अदालत के दरवाजे से न्याय का अंतिम निर्णय नहीं होता तब तक न्यायालय पर हर उस व्यक्ति को भरोसा करना चाहिए जो संविधान की शपथ लेकर  जन सेवक बनता है, चाहे वह  जन प्रतिनिधि हो या शासकीय सेवक



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