संजय दुबे
छत्तीसगढ़ की राजनीति में रिश्ते ही रिश्ते मिलते है। दो थे भईया, श्यामा भईया और विद्या भईया। श्यामा भईया लिहाज वाले थे इस कारण लोकप्रिय भईया नही बन पाए ।सही मायने में भइया थे तो विद्या भईया। दादा नाना के उम्र में भी विद्या भईया, अकेले दमदार भइया रहे। विद्या भईया के रहते रहते मोती लाल वोरा , छत्तीसगढ़ की राजनीति में कद्दावर बने, उनके साथ रिश्ते का नया नाम आया बाबू जी।मोतीलाल वोरा आकार प्रकार से बुजुर्ग दिखते थे सो बाबू जी उनके नाम के साथ जुड़ गया और मोती लाल वोरा जगत बाबू जी हो गए। भारतीय राजनीति में दो ही व्यक्ति पूर्व में जगत बाबू जी थे, राजेंद्र बाबू और बाबू जगजीवन राम। बात छत्तीसगढ़ की हो रही है तो मध्य प्रदेश से पृथक होकर अस्तित्व में आए राज्य छत्तीसगढ़ की राजनीति में एक अफसर का आगमन हुआ। अजीत जोगी, नए राज्य के पहले मुख्य मंत्री बने तो भईया राजनीति की जगह पर साहब शब्द का प्रवेश हुआ। मुख्य मंत्री निवास और कार्यालय में साहब,साहब गूंजने लगा। अजीत जोगी महज तीन साल ही मुख्य मंत्री रह पाए।
भईया, बाबू जी और साहब के बाद डा रमन सिंह मुख्यमंत्री बने तो राजनीति में नए शब्द का प्रवेश हुआ "बाबा"। छत्तीसगढ़ में सार्वजनिक वितरण प्रणाली को पारदर्शी और जनोन्मुखी बनाने मे डा रमन सिंह देश भर में लोकप्रिय हो गए। उनको चांऊर वाले बाबा के नाम से जाने जाना लगा।
पंद्रह साल बाद प्रदेश में भूपेश बघेल नए मुख्य मंत्री बने। उनको न भईया कहा गया, न बाबू जी कहा गया न ही बाबा कहा गया। राजनीति में रिश्ते का नया भावार्थ आया। टाइगर अभी जिंदा है के तर्ज पर कका अभी जिंदा है के साथ कका शब्द राजनीति के गलियारे में गूंजने लगा। रिश्ते के काका, बड़े भाई के लिए बना है। छत्तीसगढ़ी भाखा में काका को कका कहा जाता हैं। कका भी राजनीति में पांच साल ही रह पाए।
अब विष्णु देव साय आए है सांय सांय करते हुए। उनके लिए फिलहाल कोई संबोधन नही बना है। राजनीति के रिश्तों की किताब में शब्द की तलाश जारी है। भईया,बाबू जी, साहब, बाबा, कका के बाद रिश्ते की राजनीति के लिए साय जी क्या कहलाएंगे?
विष्णु को पालनहार माना जाता है। पालनहार के लिए फिलहाल खाली" साय जी" चल रहा है।